खरगोश और कछुआ: एक कहानी श्रम और सहीमार्ग की

 



एक समय की बात है, एक गाँव में एक खरगोश और एक कछुआ रहते थे। खरगोश बहुत ही चालाक और तेज था, जबकि कछुआ धीमा और स्थिर था। खरगोश तेज गति से दौड़ता था, जबकि कछुआ धीरे-धीरे चलता था।

एक दिन, खरगोश ने कछुए से कहा, "हे कछुआ, तुम इतने धीमे क्यों चलते हो? जिंदगी का मजा तो तेजी में है।"

कछुआ ने मुस्कुराते हुए उत्तर दिया, "हे खरगोश, हर किसी की शक्ति और क्षमता अलग-अलग होती है। मुझे मेरी धीमी चाल से खुशी मिलती है।"

खरगोश को यह जवाब पसंद नहीं आया। उसने कछुए को चुनौती दी, "अच्छा, चलो हम एक दौड़ में मुकाबला करें।"

कछुआ ने स्वीकार किया, और खरगोश और कछुआ ने दौड़ने की तैयारी की। वे दौड़ने के लिए स्टार्टिंग लाइन पर खड़े हुए।

शुरू होते ही, खरगोश तेजी से आगे निकल गया। वह बहुत ही आत्मविश्वासी था कि वह जीत जाएगा। इसी बीच, कछुआ धीरे-धीरे अपने आदमीपन के साथ आगे बढ़ रहा था।

खरगोश ने पूरी तेजी में दौड़ते हुए ध्यान नहीं दिया कि वह कब अस्थायी अवस्था में है। वह थक गया और उसकी सांसें तेज हो गई।

उसके बावजूद, कछुआ ने स्थिरता से अपना कदम बढ़ाया और धीरे-धीरे आगे बढ़ता रहा। फिर, अचानक, वह स्टार्टिंग लाइन पार कर गया और फिनिश लाइन को पहुँच गया।

खरगोश ने यह देख लिया और वहाँ खड़ा हो गया, हैरानी से भरा हुआ। उसने समझा कि कछुआ कैसे उससे पहले पहुँच गया।

कछुआ खरगोश के पास आया और मुस्कुराया, "देखा, खरगोश, जीत वही होता है जो सही मार्ग पर चलता है। धैर्य और स्थिरता कभी हार नहीं सकती।"

खरगोश ने अपनी गलती समझी और कछुए से माफी मांगी। वहन खरगोश और कछुआ ने साथ में दौड़ के अन्याय को सीखा कि जीत सही रास्ते पर चलने वाले की होती है।

इसके बाद से, खरगोश और कछुआ दोनों दोस्त बन गए और उन्होंने साथ में कई और दौड़ खेली, परंतु इस बार वे एक-दूसरे का साथ देते हुए, सही रास्ते पर चलते रहे।

इस कहानी से हमें यह सिखने को मिलता है कि जीवन में सफलता केवल तेजी और जल्दबाजी में नहीं होती, बल्कि धैर्य, सही मार्ग, और स्थिरता में ही होती है। इसलिए, हमें हमेशा सही मार्ग पर चलना चाहिए, चाहे जितना भी समय लगे।

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